ऐसे हैं कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं



आज है 31 जुलाई यानी की धनपतराय उर्फ़ प्रेमचन्द जी का जन्मदिवस, कूड़ा-करकट टीम की ओर से इनकी लेखनी को सलाम और जन्मदिन की बधाई | फोटो एडिट आमिर 'विद्यार्थी' द्वारा |   






मुंशी जी आप विधाता तो न थे, लेखक थे 

अपने किरदारों की किस्मत तो लिख सकते थे |  _गुलज़ार


धनपतराय जिन्हें हम 'प्रेमचन्द' के नाम से जानते है और 'प्रेमचन्द' जिन्हें हम उनकी रचनाओं एवं उनके द्वारा दिए गये साहित्यिक योगदान से जानते है | प्रेमचन्द एक ऐसा नाम है जिन्हें मात्र हिंदी में ही नहीं देश की अन्य भाषाओँ में भी पढ़ा और जाना जाता है | कथा सरताज प्रेमचन्द का साहित्य जितना अपने समय में प्रासंगिक था उससे कही अधिक आज लगता है | प्रेमचन्द पूर्व साहित्य में स्वप्नलोक की अभिव्यक्ति अधिक मिलती है, प्रेमचन्द के आने से कथा साहित्य को भाव और शिल्प दोनों ही पक्षों को एक नई दिशा और गति मिली | जिसका प्रभाव एक लम्बे समय तक दिखाई देता है | इनकी रचनाओं में हर उस उपेक्षित वर्ग को आवाज मिली है जिसको कमजोर समझा जाता रहा है, जो अपने हक से वंचित रहें है इनमें किसान, श्रमिक, दलित, स्त्री,वेश्या और हर वो सामान्य व्यक्ति जो अपने अधिकारों के लिए छटपटा रहा था | या यूँ कहे की सामाजिक समस्याओं को प्रेमचन्द के रचनाकर्म से प्रखर अभिव्यक्ति मिली है | इनकी कहानियों व उपन्यासों के पात्र व्यवस्थाओं से संघर्ष करते साफ़ नजर आते हैं और वे पात्र रुकते नहीं है बदलाव की उम्मीद रखते है "पत्नी से पति" नामक कहानी में गोदावरी अपने पति से कहती है "सब सोच लिया है | मैं चल कर दिखा दूंगी | हाँ, मैं जो कुछ कहूँ, वह तुम किये जाना | अब तक मैं तुम्हारे इशारे पर चलती थी, अब से तुम मेरे इशारे पर चलना |..........आज तक तुम मेरे पति थे आज से मैं तुम्हारा पति हूँ | इस तरह यहाँ एक परिवर्तन की घोषणा दिखाई देती है और यही इनके साहित्य की विशेषता भी है | कभी-कभी हमे प्रेमचन्द को बिना किसी प्रभाव और वाद के भी देखना चाहिए भले ही प्रेमचन्द पर इनका प्रभाव रहा हो | क्योंकि अधिकतर विद्वान या बुद्धिजीवि उन पर गांधी, तोल्स्तोय, व मार्क्स आदि प्रभाव को सिद्ध करने में ही लगे रहते है जिससे उनके समग्र साहित्य से हम यथार्थ रूप से परिचित नहीं हो पाते है | 
प्रेमचन्द ने वैसे तो 300 के आस-पास कहानियाँ लिखी जिसमें ईदगाह, कफ़न, मन्त्र, नमक का दरोगा, बड़े घर की बेटी, बूढी काकी, ठाकुर का कुआँ, नशा, जेल, शराब की दूकान आदि कहानियां लिखी जो आज भी अपने विषयानुरूप प्रासंगिक ठहरती है | 
प्रेमचन्द सेवासदन से गोदान तक भले ही अलग-अलग रूप में नज़र आते हों परन्तु उनका उद्देश्य एक ही था, समाज में व्याप्त कुरीतियों, हिन्दू-मुस्लिम एकता, छुआछूत, स्त्रियों की दशा, आदि को यथार्थ रूप में उजागर करना |  
'साहित्य का उद्देश्य' में प्रेमचन्द लिखते है - 'वह (साहित्य) देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई भी नहीं है, बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई सच्चाई है |' प्रेमचन्द एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जिसमें सब बराबर का हक रखते हों, बस यही वजह है की प्रेमचन्द को हर कोई अपने अनुसार व्याख्यायित करता है और अपने से जोड़ता है | 


                                                         __वसीम

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