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Showing posts from July, 2017

ऐसे हैं कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं

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आज है 31 जुलाई यानी की धनपतराय उर्फ़ प्रेमचन्द जी का जन्मदिवस, कूड़ा-करकट टीम की ओर से इनकी लेखनी को सलाम और जन्मदिन की बधाई | फोटो एडिट आमिर 'विद्यार्थी' द्वारा |    मुंशी जी आप विधाता तो न थे, लेखक थे  अपने किरदारों की किस्मत तो लिख सकते थे |  _गुलज़ार धनपतराय जिन्हें हम 'प्रेमचन्द' के नाम से जानते है और 'प्रेमचन्द' जिन्हें हम उनकी रचनाओं एवं उनके द्वारा दिए गये साहित्यिक योगदान से जानते है | प्रेमचन्द एक ऐसा नाम है जिन्हें मात्र हिंदी में ही नहीं देश की अन्य भाषाओँ में भी पढ़ा और जाना जाता है | कथा सरताज प्रेमचन्द का साहित्य जितना अपने समय में प्रासंगिक था उससे कही अधिक आज लगता है | प्रेमचन्द पूर्व साहित्य में स्वप्नलोक की अभिव्यक्ति अधिक मिलती है, प्रेमचन्द के आने से कथा साहित्य को भाव और शिल्प दोनों ही पक्षों को एक नई दिशा और गति मिली | जिसका प्रभाव एक लम्बे समय तक दिखाई देता है | इनकी रचनाओं में हर उस उपेक्षित वर्ग को आवाज मिली है जिसको कमजोर समझा जाता रहा है, जो अपने हक से वंचित रहें है इनमें किसान, श्रमिक, दलित, स्त्री,वेश्या और ह

जन्मदिवस - नेल्सन मंडेला, राजेश जोशी, मेहदी हसन

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आज है 18 जुलाई यानी अपने-अपने क्षेत्र के तीन महारथियों का जन्मदिन, जिनमें रंगभेद नीति के विरोध के प्रतीक नेल्सन मंडेला, ग़ज़ल के शहंशाह मेहदी हसन जिनकी गायकी को आज भी लोग बहुत पसंद करते हैं और राजेश जोशी जिन्होंने 'मारे जाएँगे', 'बच्चे काम पर जा रहें है', 'समरगाथा' आदि जैसी व्यंग्यात्मक कविताएँ लिखी | कूड़ा-करकट टीम की ओर से इन तीनों को नमन | फोटो एडिट आमिर 'विद्यार्थी' द्वारा |       (((((((((( नेल्सन मंडेला ))))))))) मंडेला वाह! वह भी क्या इंसान हुआ! नहीं स्वीकार था उसे अपने अंदर के इंसान को समर्पण करने देना घोर अमानवीय कृत्य के भी आगे। किसने उससे क्या लिया क्या छिना इससे कोई फर्क नहीं पड़ा वो या उसका व्यक्तित्व न इससे कभी छोटा पड़ा। भयानक दासता और दमन से जन्मा अपने अंदर सम्मान और आजादी की निरंतर चाह लिए हुए जीता रहा देखने को अंत उस दानवी शासन का पर ह्रदय मे कभी नही थी कोई कड़वाहट या घृणा जीवन था उसका उत्सव हंसी, खुशी और आजादी का। बहुत नहीं है अभी तक पैदा हुए इस धरती पर उस जैसा युग-पुरुष आशा है उ

हिंदी सिनेमा का गुरु और कुमार

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आज है 9 जुलाई यानी हिंदी सिनेमा जगत की ऐसी दो महान,बहुआयामी व्यक्तित्व से ओत-प्रोत प्रतिभाओं का जन्मदिवस। जिन्हें सामान्यत: हम सभी प्यासा, कागज़ के फ़ूल,आर-पार,साहब बीवी और गुलाम,चौदहवीं का चाँद तथा दस्तक,कोशिश,सीता और गीता,शोले,आंधी,अर्जुन पंडित इत्यादि फिल्मों के माध्यम से जानते हैं क्रमश:उनके नाम हैं वसंथ कुमार शिवशंकर पादुकोण अर्थात 'गुरु दत्त' तथा हरिभाई जरीवाल अर्थात शोले फिल्म में ठाकुर का किरदार निभाने वाले संजीव कुमार। तो आइए कूड़ा-करकट ब्लॉग समूह की ओर से शुरू की गई साहित्यकारों-फिल्मकारों के जन्मदिवस और पुण्यतिथि की इस बहुमूल्य कड़ी में देखते हैं कुछ चित्र जिनको संवारा है 'आमिर विद्यार्थी' ने।                                                         photo edit by:-आमिर विद्यार्थी

पहला गिरमिटिया के लेखक का जन्मदिवस

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आज है 8 जुलाई यानी साहित्य अकादेमी,पद्मश्री,व्यास तथा भारतेंदु आदि पुरस्कार से समादृत उपन्यासकार,कहानीकार,नाटककार और आलोचक श्रीयुत "गिरिराज किशोर" का जन्मदिवस। तो आइए कूड़ा-करकट ब्लॉग समूह की ओर से जन्मदिवस तथा पुण्यतिथि मनाने की इस कड़ी में देखते हैं कुछ चित्र जिनको संवारा है हमारी ही टीम के सदस्य आमिर विद्यार्थी ने।

चंद्रधर शर्मा गुलेरी जन्मदिवस

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आज है 7 जुलाई यानी प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर 'उसने कहा था' नामक कहानी लिखने वाले श्रीयुत 'चंद्रधर शर्मा गुलेरी' का जन्मदिवस।तो आइए जन्मदिवस की इस कड़ी में कूड़ा-करकट समूह की ओर से देखते हैं कुछ चित्र जो edit किये हैं 'आमिर विद्यार्थी' ने

कविता

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        ‘उड़ता दरवाज़ा’ नक्शा  नवीस ने बना दी खिड़की झाँक सके अंदर देख सके स्त्री की निजता को दिखाई दे सके स्त्री को खिड़की जितना ही बाहर जैसे नही दिखता काली शीशे लगी गाडी में बाहर से दंभी लोग भौक रहे हैं रच रहे हैं षडयंत्र                           आखिर गलती बाँझ नहीं होती    वो जन्म दे देती है,    जी लेती है नसीब समझकर    समझ लेती है खिड़की खुली है    पर भूल जाता है नक्शा नवीस    बनाया है उसने ही ‘दरवाजा’ |                                                           __ शाहीन                                                              

असग़र वजाहत और अब्दुल बिस्मिल्लाह जन्मदिवस

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आज है 5 जुलाई यानी  साहित्य की वह ऐतिहासिक तारीख़ जिसने हिंदी साहित्य-संसार को दो ऐसे मूर्धन्य साहित्यकार दिए जिन्हें हम असग़र वजाहत और अब्दुल बिस्मिल्लाह के नाम से जानते हैं। कूड़ा-करकट टीम की ओर से दोनों ही लेखकों को जन्मदिवस की हार्दिक बधाई के साथ-साथ पढ़ते है असग़र वजाहत की दो लघु कथाएं और अब्दुल बिस्मिल्लाह की कहानी | फोटो एडिट किये हैं आमिर विद्यार्थी ने।                                   (((((((असग़र वजाहत))))) 1 - वीरता जैसा कि अक्सर होता है। यानि राजा जालिम था। वह जनता पर बड़ा अन्याय करता था और जनता अन्याय सहती थी, क्योंकि जनता को न्याय के बारे में कुछ नहीं मालूम था। राजा को ऐसे ही सिपाही रखने का शौक था जो बेहद वफ़ादार हों। बेहद वफ़ादार सिपाही रखने का शौक उन्हीं को होता है जो बुनियादी तौर पर जालिम और कमीने होते हैं। राजा को हमेंशा ये डर लगा रहता था कि उसके सिपाही उसके वफ़ादार नहीं हैं और वह अपने सिपाहियों की वफ़ादारी का लगातार इम्तिहान लिया करता था। एक दिन उसने अपने एक सिपाही से कहा कि अपना एक हाथ काट डालो। सिपाही ने हाथ काट डाला। राजा बड़ा खुश हुआ और उसे वीरता

आलोक धन्वा जन्मदिवस

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आज है 2 जुलाई यानी "महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है"जैसी आदि बहुमूल्य काव्य पंक्ति लिखकर आधुनिक हिंदी कवियों में एक प्रमुख स्थान बनाने वाले हम सब के प्रिय कवि श्रीयुत'आलोक धन्वा' का जन्मदिवस। तो इस अवसर पर आइए आज पढ़ते हैं कूड़ा-करकट टीम की ओर से आलोक धन्वा द्वारा रचित कवितायें।  1:- (मुलाक़ातें ) अचानक तुम आ जाओ इतनी रेलें चलती हैं भारत में कभी कहीं से भी आ सकती हो मेरे पास कुछ दिन रहना इस घर में जो उतना ही तुम्हारा भी है तुम्हें देखने की प्यास है गहरी तुम्हें सुनने की कुछ दिन रहना जैसे तुम गई नहीं कहीं मेरे पास समय कम होता जा रहा है मेरी प्यारी दोस्त घनी आबादी का देश मेरा कितनी औरतें लौटती हैं शाम होते ही अपने-अपने घर कई बार सचमुच लगता है तुम उनमें ही कहीं आ रही हो वही दुबली देह बारीक चारखाने की सूती साड़ी कंधे से झूलता झालर वाला झोला और पैरों में चप्पलें मैं कहता जूते पहनो खिलाड़ियों वाले भाग दौड़ में भरोसे के लायक तुम्हें भी अपने काम में ज़्यादा मन लगेगा मुझ

प्रो. तुलसीराम

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प्रो.तुलसीराम जी के जन्म दिवस पर उनको याद करते हुए ..... उन्ही के द्वारा लिखी हुई आत्मकथा मणिकर्णिका का एक अंश ।।। 1 जुलाई , 1969  को दो ऐसी घटनाएं घटीं ,  जिन्हें मैं कभी नहीं भूल  पाऊंगा  सर्टिफिकेट के अनुसार  1  जुलाई  1949  को मेरा जन्मदिन पड़ता है। उस दिन मैं  20  साल का हो गया था। मैं गोदौलिया से सिटी बस पकड़कर मडुआडीह रेल इंजन कारखाने स्थित अपने रिश्तेदार रघुनाथ प्रसाद के घर जा रहा था। कारखाना  जनरल मैनेजर के आफिस के ठीक सामने से रेल लाइन गुजरती थी। हमारी बस रेल लाइन के समांतर बनी सड़क पर बाएं न मुड़कर सीधे बिना फाटक वाली रेल लाइन पर चढ़ गई। इस बीच इलाहाबाद से आ रही रेलगाड़ी आ धमकी। मुश्किल से एक इंच का फासला रहा होगा ,  अन्यथा बस के चिथड़े-चिथड़े उड़ गए होते। ड्राइवर ने दिमाग से काम लेकर बस को लाइन पार कराकर जी.एम. आफिस से टकराते-टकराते बचा लिया था। बस में साठ-सत्तर आदमी किसी तरह अंटे हुए थे। सबने राहत की सांस ली अन्यथा उस दिन कोई जिंदा नहीं बचता। बस में बैठी कुछ औरतंे रोने लगी थीं। उस दिन अपने रिश्तेदार के यहां दोपहर का खाना खाकर शाम को उसी बस से पुनः गोदौलिया वापस उतर गया